देशभर में रंगों के त्यौहार रंगपंचमी कि धूम, उज्जैन में महाकाल कि गेर निकली. मालवा में समस्त कारोबार बंद रख होली से रंगपंचमी तक रंगों से खेलने का आयोजन चलता रहता हे.मध्यप्रदेश के नगर इंदौर में इस दिन सड़कों पर रंग मिश्रित सुगंधित जल छिड़का जाता है। लगभग पूरे मालवा प्रदेश में होली पर जलूस निकालने की परंपरा है। जिसे गेर कहते हैं। जलूस में बैंड-बाजे-नाच-गाने सब शामिल होते हैं। नगर निगम के फ़ायर फ़ाइटरों में रंगीन पानी भर कर जुलूस के तमाम रास्ते भर लोगों पर रंग डाला जाता है। जुलूस में हर धर्म के, हर राजनीतिक पार्टी के लोग शामिल होते हैं, प्राय: मेयर ही जुलूस गेर का नेतृत्व करता है।
होली का एक और विस्तार रंगपंचमी के रूप में पूरे मालवा और निमाड़ अंचलों में पूरी धूमधाम से होता है। इसमें टेपा सम्मेलन, हास्य कविसम्मेलन और बजरबट्टू सम्मेलन जैसे कई जमावड़े समाए हैं जो रंगपंचमी के बहाने इंदौर शहर की उत्सवधर्मिता का पता देते हैं। पूरे आलम में दिल खोल कर की जाने वाली मस्ती, छेडछाड, चुहलबाजी सम्मिलित रहती है। इस सब में चार चाँद लगा देती हैं रंग-रंगीली गेर। गेर एक तरह का चल-समारोह है जिसमें गाना है, नृत्य है, जोश है, बड़ी बड़ी मिसाइले हैं जिनसे पाँच पाँच मंज़िलों तक रंगों के फ़व्वारे फ़ूट पड़ते हैं। शहर के पुरातन क्षेत्र से निकलने वाली ये ‘गेर’ अलग अलग संस्थाओं द्वारा निकाली जाती हैं। चार से पाँच घंटों पर सड़क पर निकलता अलबेलों का ये कारवाँ इन्दौर की जनता को एक अनूठी उत्सवप्रियता से भर देता है। इस दिन पूरा शहर गुलाल और रंग से तर-बतर होकर सड़क पर आ जाता है। अलग अलग भेष धरे जाते हैं, स्वांग की शान होती है, और महिला-पुरुष मिल कर होली के गीत गाते चलते हैं। मज़े की बात यह है कि इन गेर में कोई औपचारिक निमंत्रण नहीं होता है। कोई भी सम्मिलित हो सकता है और मस्ती का हमसफ़र बन सकता है। न किसी तरह की मनुहार और न निमंत्रण की दरक़ार।
प्राचीनकाल में जब होली का पर्व कई दिनों तक मनाया जाता था तब रंगपंचमी होली का अंतिम दिन होता था और उसके बाद कोई रंग नहीं खेलता था।
महाराष्ट्र में होली के बाद पंचमी के दिन रंग खेलने की परंपरा है। यह रंग सामान्य रूप से सूखा गुलाल होता है। विशेष भोजन बनाया जाता है जिसमे पूरनपोली अवश्य होती है। मछुआरों की बस्ती मे इस त्योहार का मतलब नाच, गाना और मस्ती होता है। ये मौसम रिशते (शादी) तय करने के लिये मुआफिक होता है, क्योंकि सारे मछुआरे इस त्योहार पर एक दूसरे के घरों को मिलने जाते है और काफी समय मस्ती मे व्यतीत करते हैं।
राजस्थान में इस अवसर पर विशेष रूप से जैसलमेर के मंदिर महल में लोकनृत्यों में डूबा वातावरण देखते ही बनता है जब कि हवा में लाला नारंगी और फ़िरोज़ी रंग उड़ाए जाते हैं।
रंग पंचमी महाराष्ट्र में होली को कहते हैं। महाराष्ट्र और कोंकण के लगभग सभी हिस्सों में इस त्योहार को रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। मछुआरों की बस्ती में इस त्योहार का मतलब नाच-गाना और मस्ती होता है। यह मौसम शादी तय करने के लिए ठीक माना जाता है क्योंकि सारे मछुआरे इस त्योहार पर एक-दूसरे के घरों को मिलने जाते हैं और काफ़ी समय मस्ती में बीतता है। महाराष्ट्र में पूरनपोली नाम का मीठा स्वादिष्ट पकवान बनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस मौके पर जगह-जगह पर दही हांडी फोड़ने का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। दही-हांडी की टोलियों के लिए पुरस्कार भी दिए जाते हैं। इस दौरान हांडी फोड़ने वालों पर महिलाएँ अपने घरों की छत से रंग फेंकती हैं।
चैत्र कृष्ण पंचमी को खेली जाने वाली रंगपंचमी आह्वानात्मक होती है। यह सगुण आराधना का भाग है। ब्रह्मांड के तेजोमय सगुण रंगों का पंचम स्रोत कार्यरत कर देवता के विभिन्ना तत्वों की अनुभूति लेकर उन रंगों की ओर आकृष्ट हुए देवता के तत्व के स्पर्श की अनुभूति लेना, रंगपंचमी का उद्देश्य है। पंचम स्रोत अर्थात पंच तत्वों की सहायता से जीव के भाव अनुसार विभिन्न स्तरों पर ब्रह्मांड में प्रकट होने वाले देवता का कार्यरत स्रोत। रंगपंचमी देवता के तारक कार्य का प्रतीक है। इस दिन वायुमंडल में उड़ाए जाने वाले विभिन्न रंगों के रंग कणों की ओर विभिन्न देवताओं के तत्व आकर्षित होते हैं। ब्रह्मांड में कार्यरत आपतत्वात्मक कार्य तरंगों के संयोग से होकर जीव को देवता के स्पर्श की अनुभूति देकर देवता के तत्व का लाभ मिलता है। रंगों का पर्व रंगपंचमी, होली ब्रह्मांड का एक तेजोत्सव है। तेजोत्सव से, अर्थात विविध तेजोत्सव तरंगों के भ्रमण से ब्रह्मांड में अनेक रंग आवश्यकता के अनुसार साकार होते हैं तथा संबंधित घटक के कार्य के लिए पूरक व पोषक वातावरण की निर्मित करते हैं। आज्ञाचक्र पर गुलाल लगाना, पिंड बीज के शिव को शक्ति तत्व का योग देने का प्रतीक है। गुलाल से प्रक्षेपित पृथ्वी व आप तत्व की तरंगों के कारण देह की सात्विक तरंगों को ग्रहण करने में देह की क्षमता बढ़ती है। आज्ञा चक्र से ग्रहण होने वाला शक्तिरूपी चैतन्य संपूर्ण देह में संक्रमित होता है। इससे वायुमंडल में भ्रमण करने वाली चैतन्य तरंगें ग्रहण करने की क्षमता बढ़ती है। इस विधि द्वारा जीव चैतन्य के स्तर पर अधिक संस्कारक्षम बनता है.
वायुमंडल का शुद्धिकरण नारियल के माध्यम से वायुमंडल के कष्टदायक स्पंदनों को खींचकर, उसके बाद उसे होली की अग्नि में डाला जाता है। इस कारण नारियल में संक्रमित हुए कष्टदायक स्पंदन होली की तेजोमय शक्ति की सहायता से नष्ट होते हैं व वायुमंडल की शुद्धि होती है। त्रेता युग के प्रारंभ में भगवान विष्णु ने धूलि वंदन किया, इसका गर्भितार्थ यह है कि ‘उस युग में श्री विष्णु ने अलग-अलग तेजोमय रंगों से अवतार कार्य का आरंभ किया। धूलि वंदन के बिना खेली जाने वाली रंगपंचमी विभिन्न स्तर पर कार्यरत अवतार के सगुण के विविध रंगरूपी कार्यात्मक लीला का दर्शक है। त्रेता युग में अवतार निर्मित होने पर उसे तेजोमय, अर्थात विविध रंगों की सहायता से दर्शन रूप में वर्णित किया गया है।
धूलि वंदन होली के दूसरे दिन अर्थात धूलि वंदन के दिन कई स्थानों पर एक-दूसरे के शरीर पर गुलाल डालकर रंग खेला जाता है। होली के दिन प्रदीप्त हुई अग्नि से वायुमंडल के रज-तम कणों का विघटन होता है। ब्रह्मांड में संबंधित देवता का रंग रूपी सगुण तत्व कार्यानुमेय संबंधित विभिन्न स्तरों पर अवतरित होता है व उसका आनंद एक प्रकार से रंग उड़ा कर मनाया जाता है। इस दिन खेली जाने वाली रंगपंचमी, विजयोत्सव का अर्थात रज-तम के विघटन से अनिष्ट शक्तियों के उच्चाटन व कार्य की समाप्ति का प्रतीक है। रंगपंचमी समारोपात्मक, अर्थात अनिष्ट के मारक का प्रतीक है।