भारतीय पत्रकारिता की
अदभुत परंपरा ने न केवल स्वतंत्रता हेतू सुप्त जनमानस को जगाया,
उसे संग्राम हेतु तैयार किया,
गढ़ा,
प्रेरित किया,
इस्तेमाल किया,
लक्ष्य भी प्राप्त किया,
आज भी पत्रकारिता के संवाहक,
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहितः के ध्येय पर संकल्पित है,
व्यक्ति समाज राष्ट्र को जागृत और जीवंत बनाये रखने में प्राण पन जे जुटे है,
लगातार समाज श्रेष्ठता की और अग्रसर हो उसकी सुरक्षा हो, मानव अधिकारों की अनुपालना रहे,
न्याय के लिए संघर्षरत है,
सनातन देवर्षि नारद को इस परंपरा का उदभव माने तो
आधुनिक युग से
राजाराममोहन राय ,
राजा शिवप्रसाद,
राजा लक्ष्मण सिंह,
भारतेंदु हरिश्चंद्र,
पंडित रुद्रदत्त शर्मा, (भारतमित्र, 1877),
बालकृष्ण भट्ट (हिंदी प्रदीप, 1877),
दुर्गाप्रसाद मिश्र (उचित वक्ता, 1878),
पंडित सदानंद मिश्र (सारसुधानिधि, 1878), पंडित वंशीधर (सज्जन-कीर्त्ति-सुधाकर, 1878),
बदरीनारायण चौधरी “प्रेमधन” (आनंदकादंबिनी, 1881),
देवकीनंदन त्रिपाठी (प्रयाग समाचार, 1882),
राधाचरण गोस्वामी (भारतेन्दु, 1882),
पंडित गौरीदत्त (देवनागरी प्रचारक, 1882), राज रामपाल सिंह (हिंदुस्तान, 1883),
प्रतापनारायण मिश्र (ब्राह्मण, 1883),
अंबिकादत्त व्यास, (पीयूषप्रवाह, 1884),
बाबू रामकृष्ण वर्मा (भारतजीवन, 1884),
पं. रामगुलाम अवस्थी (शुभचिंतक, 1888), योगेशचंद्र वसु (हिंदी बंगवासी, 1890),
पं. कुंदनलाल (कवि व चित्रकार, 1891) ,
बाबू देवकीनंदन खत्री ,
बाबू जगन्नाथदास (साहित्य सुधानिधि, 1894)।
बाबूराव विष्णु पराड़कर, , आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी, हरिश्चंद्र मुखर्जी,
तिलक,
गोखले,
दादाभाई नौरोजी,
सुरेंद्रनाथ बनर्जी,
मदनमोहन मालवीय , मोतीलाल नेहरू,
जवाहरलाल नेहरू,
एनी बेसेंट,
आचार्य कृपलानी,
आचार्य श्रीराम शर्मा,
दयानंद
शंकराचार्य,
विवेकानंद,
अरविंद,
रवींद्रनाथ ठाकुर ,
बंकिमचन्द्र,
माखनलाल चतुर्वेदी ,
गणेश शंकर विद्यार्थी ,
लक्ष्मनप्रसाद सिंह,
घनश्यामदास बिड़ला, अम्बिका शरण बाजपेयी, बालमुकुंद गुप्त,
गिरीश चंद घोष,
रामचन्द्र शुक्ल,
जयशंकर प्रसाद,
हजारीप्रसाद द्विवेदी, सुमित्रानन्दन पन्त,
सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’,
महादेवी,
नवीन
दिनकर ,
अम्बेडकर,
केशवचन्द्र,
ज्योति फुले,
संपूर्णानंद,
प्रेमचंद,
जी सुब्रमण्यम ,
सुभाषचंद्र बोस
रामकृष्ण पिल्लई,
राजा रामचन्द्र,
आदि आदि
सम्मानीय
महानुभाव
जिनके प्रति समूची राष्ट्र की कृतज्ञता है,
आजादी के बाद भी अनेको मनीषी विचारक लेखक साहित्यकार इस विधा के प्रयोग से सामाजिक सरंचना में बेहतरी लाते रहे,
राजेन्द्र माथुर और राहुल बारपुते जैसे
भारतीय पत्रकारिता के
आदर्श और मानदंड हो हमने देखा, वेदप्रताप वैदिक भी है,
आप सभी भी उस प्रतिमान पर प्रतिबद्ध है,
यह हम सभी समूह के लिये गौरवपूर्ण है,
यह भी सत्य है कि ऐसे आदर्श बिरले होते है,
सभी नही करते सकते,
अतः कथित कृत्यों को पत्रकारिता के आवरण में करना अत्यधिक सरल और सुविधाजनक होने से,
यह हर स्तर के चतुर महानुभाव द्वारा शुद्व रूप से प्रभावी विचार शक्ति (जन संचार ) के, ज्ञान के दुरुपयोग का शक्तिशाली अस्त्र बन गया है,