सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर और सचिव अजय शिर्के को क्रिकेट बोर्ड से बाहर का रास्ता दिखा दिया है. इस कठोर कार्रवाई के पीछे जस्टिस राजेंद्र मल लोढ़ा हैं, जिनकी सिफ़ारिशों और रिपोर्ट पर उच्चतम न्यायालय ने ये क़दम उठाया.
सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2015 में जस्टिस लोढ़ा की अगुवाई में कमेटी बनाई, जिसे भारतीय क्रिकेट बोर्ड के कामकाज और उसके संविधान में बदलाव सुझाने का काम सौंपा गया था. साल भर बाद 2016 में इस समिति ने अपनी सिफ़ारिशें सौंपी, जिससे बीसीसीआई और सदस्य संघों की नींद उड़ गई.
कोर्ट ने पिछले साल दो बार बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर को आदेश दिया था कि लोढ़ा पैनल और कोर्ट के आदेशों का पालन करें. सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई से यह भी आदेश दिया है कि वह जब तक लोढ़ा पैनल के सिफ़ारिशों को नहीं माना जाता है तब तक वे राज्य क्रिकेट बोर्ड को कसी भी तरह का फंड रिलीज़ नहीं कर सकेंगे.
इससे पहले बीसीसीआई के सुधारों को लेकर बनाई गई लोढ़ा कमेटी की सिफ़ारिशों को मानने से इनकार कर दिया था और सर्वोच्च नयायालय को पुनर्विचार करने की याचिका दायर की थी. 18 जुलाई, 2016 को अपना फ़ैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था की बोर्ड को जस्टिस लोढ़ा कमेटी की सभी सिफारिशों को पूरी तरह लागू करना होगा.
क्रिकेट प्रशासन में साफ़-सफ़ाई की अगुवाई करने वाले जस्टिस लोढ़ा अतीत में भी कई ऐतिहासिक फ़ैसले सुना चुके हैं. जस्टिस लोढ़ा पांच महीने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट पहुंचने से पहले जस्टिस लोढ़ा, पटना उच्च न्यायालय के चीफ़ जस्टिस रह चुके हैं. वो राजस्थान और बम्बई हाई कोर्ट में भी रह चुके हैं.
जस्टिस लोढ़ा कथित कोयला आवंटन घोटाले के मामले की सुनवाई कर रही पीठ के अध्यक्ष भी रहे हैं.
सीबीआई को राजनीति के हस्तक्षेप से दूर करने का अहम आदेश भी जस्टिस लोढ़ा ने ही सुनाया था. अपने फ़ैसले में उन्होंने कहा था कि अदालत की निगरानी में चल रहे मामलों में कार्रवाई के लिए सीबीआई को सरकारी अनुमति की ज़रूरत नहीं है.
जस्टिस लोढ़ा की ही पीठ ने कथित कोयला घोटाले के मामले में सीबीआई को सरकार से जानकारी न साझा करने का आदेश दिया था.
इन्हीं की अध्यक्षता वाली एक बेंच ने देश में क्लिनिकल ट्रायल पर रोक लगा दी थी. अपने फ़ैसले में उन्होंने कहा था कि लोगों के हित फ़ार्मा कंपनियों के हितों से ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं.